लाचार टिंकू जी!


*टिंकू जी की रात ।

चार मग्गा बाल्टी से टिंकू जी छपा-छप नहा लिए,
थोड़ा शैंपू थोड़ा साबुन और कंडीशनर भी लगा लिए।
अंगोछा लेकर शरीर को रगड़-रगड़ सूखा लिए,
कच्छा फिर चट से पहन और इत्तर भी छिड़का लिए।

दर्पण के आगे कंघा लेकर बालों को अपने सजा लिए,
फिर माथा टेक घर मंदिर के आगे धूपबत्ती भी जला लिए।

घंटी टिन-टिन बजा बजा कर शीश भी अपना झुका लिए,
सच्ची भावना के साथ टिंकू जी कुड़बुड़-कुड़बुड़ पूजा थे करने लगे।
कि, आज तो हमको स्वप्न आ ही जाए,
कोई हसीना, कोई परी, कोई राजकुमारी दिल लगा ही जाए,
अपनी पूजा में टिंकू जी कुछ इस कदर थे खो गए,
कि, तुरंत बगल के कमरे से आवाज़ आई, अरे ओ कड़ी खाए....सुन मेरे ओ यारा
बंद कर ले अपनी ये  कुड़बुड़ और टीन-टीन,
ते घड़ी नाल नजर डाल, ते हुन बाज रे हैं, बारह(12)।
फिर चादर ले कर टिंकू जी झट से बिस्तर को भागे,
बल्ब बुझा, पंखा चाल कमरे का लगाया गेट,
बिस्तर पर गिरकर चादर खु़द को ओढ़ा लिया और हो गए फिर लंब-लेट।
आंखे मूंदी ही थी कि, इतने में, कान के पास कुछ भिन-भिनाया,

जे सारो मच्छर देखो, हमाई नींद उड़ाने हैं आया।
टिंकू जी ने झट से उठकर,कछुआ छाप जला लिए ।
अब सालो तुम तंग करो कह कर खुद को बिस्तर पर गिरा लिए।

आंखों को बंद किया ही था कि, पेट में कुछ गुडाुगड़़आया
ओह री दईया... जे पेट में हााव का बवंडर है बन आया।
तुरंत ही टिंकू जी को खानदानी दावा का नाम याद आया,. स्वाद काला नमक और जैसे कि जीरा,
चूरन बालम खीरा को पेट को बना देगा हीरा।
फिर, चूरन बालम खीरा की पानी संग फंकी लागई।
अगले ही पल कमरे में गर्जन की आवाज़ आने लगी,
पेट दर्द तो ठीक हुआ पर नींद ससुरी जाने लगी।
अब तक घंटे की सूई 2 पर और मिनट कि 30पर दर्शा रही थी,
पर, 5 मिनट की भी नींद ना टिंकू जी को आ रही थी।

फिर टिंकू जी ने योजना बनाई फ़ैज़ को पड़ने की योजना बनाई,
ताकि, आंखे भारी हो और नींद फिर आ जाए,
अब, फ़ैज़ की नज़्म के सहारे ही अरमान कुछ जगा आए।
एक के बाद एक बाद एक कई नज़्में थी पढ़ डाली और आखिर में थी ये वाली,

‘और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा’

एक तो नींद ना आने की पीढ़ा भीतर से कचोट रही थी,
भई ये वाली तो टिंकू जी के अरमानों का गला घोंट रही थी।
झट से पुस्तक बंद कर आंखें, घड़ी की तरफ घुमा ली,
इस बार घंटे की सुई 4 और मिनट की 30 पर दर्शा रही थी।

अरे ये क्या...आंखे भारी हो गई भाई, फ़ैज़ जी अपना काम कर गए, भई अब क्या कहना और क्या कहो।
झट से टिंकू जी लेट गए और आंखे डाली मूंद,
इतने में बाहर से आवाज़ आईं... जागते रहो जागते रहो।

लो भईया टिंकू जी के अरमान सारे टूट गए,
किस्मत तो फूटी ही थी सपने भी सारे टूट गए।
हर  प्रयास किया सोने का पर टिंकू जी निकले अभागे,
हां, रात भर एक नींद के लिए करवट-करवट जागे।

~हेमंत राय


     

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