ऊफ्फ ये चोटी।
ऊफ़्फ़ ये चोटी।
(हेमन्त राय)चोटी,चोटी ,चोटी उफ़्फ ये चोटी! GST को छोड़ कोई मुद्दा है तो,वो मुद्दा है ये चोटी!
पतली,मोटी, लम्बी या छोटी अजीब ही मुद्दा बना ये चोटी!
लटक-मटक,झटका के चलती थी छोटी भाभी अपनी चोटी!
अब छुपा कर चलती है वो अपनी अध-कटी चोटी।
खाने में तेल कम डालती।
चोटी को तेल पिला डालती!
ताकि खुद रहे वो सीख सी पतली ।
और मोटी हो जाये उनकी चोटी!
खुद चाहें कितनी छोटी हो पर लंबी रखती थी चोटी,
बड़ा गुमान करती थी वो!
देखो, कितनी अच्छी मेरी चोटी।
खाट पर अपने पैर पसारकर, हवा में चोटी को लटका कर, लगी लेने खर्राटे भाभी छोटी।
आँख खुली तो सिसक-सिसक कर रो रही थी,देख सुबाह वो अपनी अध-कटी चोटी!
भाभी- हाय-दइया किन्ने काट दई मेई इतनी सुन्दर चोटी।
पकरो बा चोटी-चोर कु। ना तो मरजाऊंगी रोती,ना तो मरजाऊंगी रोती।
गुस्से में आकर भाभी ने गोलगप्पे सा, मुहँ फुला लिया।
झट से उस्तारा उठा लिया और सर्र से सर पर अपने फिरा लिया।
टकली होकर बोली वो यूं- मेई बाकी टकली बहनों
जंतर-मंतर पे चलेंगे,आंदोलन करेंगे, धरना देंगे, जब तक चोटी-चोर ना पकड़ा जाएं। पर बाल ना सर पर अपने उगने देंगे।
ये थी छोटी भाभी की चोटी कि कहानी,
बदला लेने कि प्रतिगग्या, उन्होंने है लै ठानी।
लेखक को ना चाहते हुए भी लिखना पड़ रहा है,
चूंकि देश में चोटी कटने का कहर बढ़ रहा है।
मैं अंत में इतना ही कहुँगा कि, हाथ जोड़कर विनती है , अंधविश्वास के पर्चे बाटना बंद करो,
और तुम चोटी-चोरो अब चोटी काटना बंद करो।
नमस्कार-
हेमन्त राय (थियेटर आर्टिस्ट,लेखक,ब्लोग्गर)
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