सच्चाई की मौत!
पर सवाल तो अब भी ज़िन्दा रहेंगे!
मुझे खत्म करके तुम खुश मत होना,
मुझे खत्म करके तुम खुश मत होना,
मेरे जैसे अभी और मिलेंगे।
मुझे मारकर तुम्हें लगा की,
तुमने झूठ पर पर्दा डाल दिया,
असल में तुमने मुझे मारकर,
खुद को दुविधा में डाल लिया!
मुझे मारकर लगा तुम्हें,
कि जीत तुम्हारी हो गई,
जीत का तो पता नही पर,
जीत का तो पता नही पर,
इंसानियत तुम्हारी सो गयी!
क्या किया था एसा मैनें,
जो मौत के घाट उतार दिया?
इंसाफ दिलाने के लिए सच बोला,
जो राज़ छुपा था वो खोला!
घोटाले-दंगे की तुम्हें आज़ादी,
फिर क्यूं मेरी लिखने की आज़ादी को छीन लिया?
जंता को बीन-बीन तुम निगल गये।
और मेरी सांसों को भी मुझसे छीन लिया!
लाश बनाकर तुम्हें क्या मिला?
चंद रुपये और चंद शाबाशी...
अकेली निहत्थी औरत पर गोलियां दाग।
मरदानगी को तुम्हारी रत्ती भर भी शर्म नहीं आती?
कुछ मुझे 'रंडी' कह रहे हैं,
तो कुछ 'डायन' कह रहे हैं।
कुछ मेरे लड़ रहे हैं।
कुछ मेरे लड़ रहे हैं।
तो कुछ मेरे लिये सब सह रहे हैं।
तुम नारे लगाते हो भाषण देते हो,
जन-जन को इंसानियत का संभाषण देते हो...
की ये करेंगे वो करेंगे।
और जब कोई झूठ की टोपी उतार दे,
और जब कोई झूठ की टोपी उतार दे,
तुम्हारी तो उसको मरवा देते हो।
उसको मरवा देते हो।
नमस्कार-
हेमन्त राय (theatre artist & blogger)
नमस्कार-
हेमन्त राय (theatre artist & blogger)
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