सत्र 2017!

सत्र 2017....



साल 2017 हम सभी के लिए बड़ा ही विचित्र और अनूठा रहा। कोई हंसा, कोई रोया, किसी ने कुछ पाया, तो किसी ने बहुत कुछ खोया। जहाँ देश की भोली-भाली जनता नोटबंदी के घाव पर मरहम लगा कर सुखा ही रही थी, कि उतने में ही GST की मार ने सभी छोटे-बडे़ व्यापारीयो को,आम-नागरिक को, टैक्स तले दबा और डरा पुराने घाव को ताज़ा कर, मरहम के चार पैसे भी छीन लिए।
किसी पार्टी ने चुनावी मैदान में बाजीं मार सत्ता हथिया ली, तो कुछ पार्टियों ने गठबंधन के बाद भी हार खाकर अपनी धज्जियां उढवा ली।
हर बार की तरह लड़किया परीक्षा से लेकर खेल हर जगह बाज़ी मारती रही तो हर बार की तरह पप्पू इस बार भी फेल ही रहा।
एक तरफ तो केजरीवाल जी बिजली-पान रेट दर कम करवाने के बाद मेट्रो किराया कमरवाने की रट लगाते रहे तो वही चंद न्यूज़ चैनलो की बाते मे आ  केजरू-केजरू कह लोग सी°एम° को किलसाते रहे।
कुछ पार्टी चुनाव के नाम पर ढाढंस बंधाती रही तो कुछ पार्टी राम-मंदिर और बावरी-मस्जि़द के नाम पर इंसानों को भड़काती रही।
एक और जहां गीदड़ भर पड़ोसी मुल्क छुपकर वार कर हमारी गर्दन काटता रहा वहीं दूसरी और देश के नेता जवाब में एक बदले बीस एक के बदले बीस, बस जुमले ही गाते रहे।
 जहाँ पी° एम° जी देश से बाहर जा-जा कर विदेशी कंपनियों से हाथ मिला देश के भीतर लाते रहे, वहीं देश के बाबा रामदेव जी (पी° एम° मित्र) विदेशी कंपनियों के बहिष्कार के नारे के साथ विदेशी कंपनियाँ भगाते रहे।

कुछ कंपनियाँ बाल उगाने का दावा कर तेल बेंचती रही, तो वंही दूसरी ओर घर बैठी महिलाओं की चोटियाँ भी कटती रही।

बाबाओ की बात करें तो, कोई बाबा समोसे से चटनी खिलवा समस्या का समाधान बताते रहे। तो कोई बाबा दूसरे की बहन-बेटी को अपनी बहन-बेटी कह गुफा में बुला अपनी हवस मिटाते रहे। खैर अभी तो जेल में चक्की चला सूखी-बासी रोटी खा अपनी भूख ही मिटा रहे हैं।

जहाँ फिल्में बडे स्टार का नाम होने के बाद भी खासा कमाल नहीं कर पाई और तो और पद्मावती जैसी फिल्में रिलीज़ भी ना हो पाई, वहीं दूसरी और ना-मात्र बजट की एक युवा नेताओं की वाइरल एडल्ट फिल्मों ने माहौल खासा गरमाया।

शहरों में पुलिस सुरक्षा की इतनी बेकारी है कि, रेप होना शहरों में अब भी जारी है।
जहाँ एक और तीन तलाक का निर्णय होने पर सभी मुस्लिम महिलाएँ उत्सव मनाती नज़र आयी वहीं मुस्लिम भाइयों के भाई औवेशी जी बेहद ही दुःखी नज़र आए।

पता नहीं साल बदलने पर देश के लोगों की मानसिकता और बुरा व्यवहार बदलेगा की नहीं, पर हम खुद की बुरी मानसिकता को तो बदल ही सकते हैं।

आओ हम मिलकर ये विश्वास धरे,
मंसा,वाचा,कर्मणा द्वारा कुछ,
अच्छा करने की शुरुआत करे।

आप सभी को आगामी नव वर्ष की हार्दिक बधाई 🎉।

नमस्कार-
हेमन्त राय (थियेटर आर्टिस्ट,लेखक,बलोग्गर)।

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