ठेले वाला......(कविता)


  ठेले वाला......




पाव, आधा, पौने, या हो किलोग्राम।,
चाहे हो आलू, टमाटर, भिंडी, बैंगन,या ककड़ी या सेब या आम।
बच्चे, बीवी हो या संईया सभी हमें कहतें हैं भईया।
नाम तो भईया हमारे भी हैं पर, नहीं कोई बुलाता है।
कभी-कभी तो खुद का बच्चा भी भईया कह जाता है।  एक-दो घंटे नही! फल-सब्ज़ी बैचे हैं सुबह-से-शाम।
कभी तो बिकरी अच्छी होती पर,
कभी इतनी भी ना कि, खरीद सके एक झंड्डूबाम!
खरीददार की क्या बात करे,
कुछ को तो होते ही नहीं कोई काम।
आधा-घंटा चाटकर बोले है,
दे दो भाईया दो कच्चे आम।
होटल जाकर तो तुम लोग सौ-ग्राम आलू-मटर के
दो-सौ रुपए दे आते हो, और ऊपर से टिप भी चढ़ाते हो। और वहीं हमारे ठैले पर आकर,
एक-किलो आलू-मटर के ही,
बीस(२०) रुपए देने में कतराते हो।
हज़ार रुपए तो फोन के बिल।
और डेटा-पैक मैं उढ़ाते हो।
पर चिंदी-चौरी देखो अपनी कि,
दस रुपए भी हम पर उधार कर जाते हो।
भाई हम छोटी-सी झुग्गी में रहकर भी दो-रोटी से पेटभर लेते हैं।
पर संगमरमर मैं तुम रहने वालो,
क्यों हमसे मोल-भाव करते हो।
क्यों हमसे मोल-भाव करते हो।

नमस्कार-
हेमन्त राय (थियेटर आर्टिस्ट,लेखक,ब्लोग्गर)
hemantrai99.blogspot.in/

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