शमशान!



पीला पड़ने के बाद जहाँ ख़ामोश शरीर आता है।
ये ऐसा एक स्थान है।
शांति होने पर भी मचता है जहाँ सन्नाटे का शोर,
ये वो ख़ामोशी से चीख़ता हुआ शमशान है।

जो आते हो यहाँ तो, ना लड़ाई, ना दंगा,
ना पैसे कमाने का पंगा।
छोड़ आनी होती है ज़िंदगी भर की कमाई,
चूंकि यहाँ आना होता है नंगा।

तू था ग़रीब या था तू मुखिया,
रहा सुखी या रहा था दुखिया।
यहाँ सभी एक ही समान है,
क्योंकि ज़िंदा का नहीं, ये मुर्दों का मक़ान है।

गंगा-जमुना डुबकी लगाया।,
पर पाप ना फिर भी धो पाया।
दिया जो तूने धोख़ा औरों को,
आख़िर में खुद ही खाया।

राजा बनने के चक्कर में,
धोबी भी ना तू बन पाया।
दूजो को मुंहँ की खिलाने वाले,
आख़िर में खुद मुहँ की खाया।

सारी ज़िंदगी इधर-उधर तू भागता रहा,
भटक-भटक कर हांफ़ता रहा।
रिश़्ते बचाने के चक्कर में,
ख़ुद को ख़ुद से काटता रहा।

क्या खोया था, क्या था पाया,
और क्या था तूने जो कमाया,
भूल जा उसको याद ना कर।
मांगने की हद तू, अब पार ना कर,
तू मर चुका है, फ़रियाद ना कर।

भूल जा अपना जो घर था तेरा,
ये अब तुझ मुरदे का मसान है।
सच्चाई यहाँ की बस इतनी नहीं कि,
ये जली,कटी,दबी लाशो का शमशान है।

नमस्कार:-
हेमन्त राय (थियेटर आर्टिस्ट,लेखक,बलोग्गर)

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