हां तुम छोड़ कर जा सकते हो,  तुम चाहो तो....







हां तुम छोड़ कर जा सकते हो, तुम चाहो तो....
पर उन वादों का क्या, जो मुंडेर पर बैठकर हम दोनों ने साथ में किए थे,
उन रास्तों का क्या, जो सीधा मेरी गली से तुम्हारी देहलीज़ पर आकर रुकते थे

हां, तुम छोड़ कर जा सकते हो, तुम चाहो तो....
अरे उन रातों का, रातों में हुई मुलाकातों का मुलाकातों
में छिड़ी उन बातो का, उन बातो से पैदा होकर तुम्हारे और मेरे मन में बसते हुए उन जज्बातों का तुम क्या करोगे?

घर, परिवार, समाज, इन सब को ठुकरा कर तोड़ी थी अपनी सब मर्यादा, और सारी रस्में,
हां तुमने भी तो खाई थी मेरे साथ कुछ कस्मे,
कि साथ रहेंगे जनम-जनम, हम प्यार करेंगे तुम्हे सनम,
हां, पर तुम छोड़ कर जा सकते हो, गर तुम चाहो तो....
पर उन खोखले, ढकोसले वादों का तुम क्या करोगे?

मैंने अपना हर पल, हर लम्हा, खुद के जीवन से चुरा के तुमको दिया,
मैं, खुद को संवारना भूल गई तुम्हारी रोज़ाना की ज़िंदगी को संवारने के चक्कर में,
अरे, मैं अपना ही अस्तित्व भूल तुमको निखारने के चक्कर में।

तुम्हारी ज़िंदगी बेस्वाद ना हो जाए, तुम्हारी हर छोटी छोटी कमियों दरकिनार कर, ख़ुद कड़वाहट का घूंट पी, तुम्हें खुशियों की शक्कर खिलाती रही,
और यह घर-घर की तरह ही रहे, दिन रात मशीन कि भांति हाथ-पैर चलाती रही।

फिर भी तुम खुश नहीं हुए, तुम जाना चाहते हो,
हां, तुम छोड़ कर जा सकते हो, तुम चाहो तो...

पर इतना तो हक़ है मुझे यह जानने का की, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है,
सुनो, ज़रा देखो मेरे शरीर की और, ज़रा गौर से देखो इस पेट में हमारा एक नया, नवजात शिशु पल रहा है।
ये सब जानने के बाद भी अगर, तुम जाना चाहते हो तो, तुम जा सकते हो, तुम चाहो तो.......

~हेमंत राय।


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