तुम बिन!

मैं,आज भी वहीं लेटा हूं।
जहां कल लेटा था।
ठीक उसी कमरे में,
उसी जगह,
उसी बिस्तर पर,
उसी कंबल और बिस्तर पर पड़ी,
उसी तकिए पर रखा मेरा सिर...
सब कुछ वही है,
अगर, कुछ नहीं है तो वो हो तुम। 
तुम नहीं हो यहां रोज़ की तरह,
मेरे बगल में।
आज मेरी बाजुएं बिल्कुल ख़ाली है।
वहीं बाजुएं जो कल तक,
तुम्हारे सिर का तकिया बन जाया करती थी।
 कल तक मेरे बिस्तर में,
तुम्हारे शरीर की गंध भर जाया करती थी,
जो किसी गुलाब, चमेली,
या मोग्रा के फूलों की खुशबू से भी,
कहीं ज्यादा लुभावनी थी।
       
आज मेरे बिस्तर में कुछ भी नहीं घट रहा है।
सिवाय वीरानगी  के,
कल तक इस बिस्तर में,
दो लोगो के बीच की,
गरमाती गुफ्तुगु का सैलाब आता था,
जो दोनों को आत्मीय प्रेम में,
बहा ले जाता था।
और आज एक सन्नाटा सा छाया हुआ है।
जब भी सुबह उठता था।
तो, ये आंखे सीधा तुम पर ही खुलती थी।
और बीती रात देखे,
बंद आंखो के सारे सपने,
तुम्हे देखते ही खुली आंखो से,
पूरे हो जाया करते थे।

रोज़ सुबह मेरे बिस्तर की सिलवटे,
और तुम्हारी बालो की लटो का बिगड़ना,
फिर तुम्हारा उन सिलवटों को,
और मेरा तुम्हारे माथे पर बिखरी,
बालो की लटो को संवारना......!

और ऐसा ही बहुत कुछ......
जो घटा सिर्फ हम दोनों के बीच,
जिसे जानता है सिर्फ तुम्हारा और मेरा मन!!!

# तुम्हारे बिना।

~हेमंत राय।
 18-02-2020

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