पुरानी फोटों (संस्मरण)
पुरानी फ़ोटो!!!
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आज मैंने फिर देखी वो ‘पुरानी फ़ोटो'
अपने पर्स में रखी, ठीक मेरी फ़ोटो के बग़ल में ‘तुम्हारी फ़ोटो’।
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मैं जब-जब तुम्हारी उस पुरानी फ़ोटो को देखता हूं।
तो हर बार मैं भी ‘हो जाया करता हूं कुछ-कुछ पुराना’ और बट जाया करता हूं मैं ‘होगी’ शब्द के साथ। और करने लगता हूं यात्रा वर्तमान और भविष्य की ‘भूतकाल' के सहारे।
कि तुम अब कैसी होगी?
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क्या अब भी तुम्हारे केश लहराते होंगे? तुम्हारी चोटी खोलने पर, जैसे लहराती है रवि की फसल नवंबर से अप्रैल माह के बीच? और तुम्हारे सुकोमल शरीर के ठिठुरने पर, रखती होगी तुम चाह अपने शरीर पर, मेरे स्वेटर की, जो बुना था मेरी अम्मा ने, तुम्हारा नाप लेकर, जब नहीं था मैं वहां, गया हुआ था अपने ननिहाल।
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क्या अब भी रोती होगी किसी ज़िद्द के लिए? जैस ‘रोती थी तुम अपनी मां के आगे, आंगन में लगे नीम पर झूला डलवाने के लिए, और रखती थी यह अभिलाषा, कि पीछे खड़े होकर, दूं मैं एक ज़ोर का झोटा इस कोशिश में, कि तुम छू सको उस नीले आकाश को।
और चीखती थी ज़ोर की अपने कंठ से, कि मिला सको अपनी आवाज़, नील गगन में उड़ते पक्षियों के साथ-साथ, यही वसुधा पर रहते हुए भी?
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क्या आज भी बांट देती होगी,अपने सपने किसी और को?
जैसे बांटा करती थी तुम अपनी दो में से एक रोटी मुझे। जब हो जाया करता था मैं नाराज़ अपनी अम्मा से, और चला आता था स्कूल, बिना टिफिन लिए?
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क्या आज भी चला रही होगी अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी बड़े ही बे-धड़क अंदाज़ में। इस उम्मीद में, कि गिरने से पहले ही थाम लेगा कोई तुम्हे, जैसे थामा करता था मैं ‘ तुम्हे और तुम्हारी साइकिल का हैंडल गिरने से पहले, तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ते हुए?
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क्या तुम अब भी बटोरती हो कुछ सपने, जैसे बटोरने जाया करती थी, नहर किनारे की कच्ची अमिया, ‘कच्ची उम्र में मेरे साथ’?
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क्या तुम अब डर जाती होगी बे ढ़ंगे हालातो से, ठीक वैसे ही जैसे डर जाती थी , पीपल के पेड़ वाली घटना सुनकर, और फिर लग जाती थी मेरे गले से, ‘डर के मारे।
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क्या तुम अब भी किसी के आगे हार जाया करती होगी? जैसे हार जाया करती थी लंगड़ी के खेल में, मेरे आगे? सबसे जीतने के बाद भी। सिर्फ इसलिए, कि ‘मैं जीत सकू’।
ऐसा ही बहुत कुछ है जो ‘होगी’ शब्द में लिपटा हुआ है!
लेकिन क्या तुम्हारे पर्स में भी रखी है मेरी वो पुरानी फ़ोटो,
‘ठीक तुम्हारी फ़ोटो के बग़ल में?
और क्या तुम भी, हो जाया करती हो पुरानी,और करती यात्रा भूतकाल की, वर्तमान और भविष्य के द्वार, मात्र एक फ़ोटो को देखकर ‘ठीक मेरी तरह’?
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एक लेखक की तरफ से जो हो जाय करता है पुराना,
देखकर पुरानी फ़ोटो।
~ हेमंत राय।
30-06-2020
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आज मैंने फिर देखी वो ‘पुरानी फ़ोटो'
अपने पर्स में रखी, ठीक मेरी फ़ोटो के बग़ल में ‘तुम्हारी फ़ोटो’।
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मैं जब-जब तुम्हारी उस पुरानी फ़ोटो को देखता हूं।
तो हर बार मैं भी ‘हो जाया करता हूं कुछ-कुछ पुराना’ और बट जाया करता हूं मैं ‘होगी’ शब्द के साथ। और करने लगता हूं यात्रा वर्तमान और भविष्य की ‘भूतकाल' के सहारे।
कि तुम अब कैसी होगी?
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क्या अब भी तुम्हारे केश लहराते होंगे? तुम्हारी चोटी खोलने पर, जैसे लहराती है रवि की फसल नवंबर से अप्रैल माह के बीच? और तुम्हारे सुकोमल शरीर के ठिठुरने पर, रखती होगी तुम चाह अपने शरीर पर, मेरे स्वेटर की, जो बुना था मेरी अम्मा ने, तुम्हारा नाप लेकर, जब नहीं था मैं वहां, गया हुआ था अपने ननिहाल।
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क्या अब भी रोती होगी किसी ज़िद्द के लिए? जैस ‘रोती थी तुम अपनी मां के आगे, आंगन में लगे नीम पर झूला डलवाने के लिए, और रखती थी यह अभिलाषा, कि पीछे खड़े होकर, दूं मैं एक ज़ोर का झोटा इस कोशिश में, कि तुम छू सको उस नीले आकाश को।
और चीखती थी ज़ोर की अपने कंठ से, कि मिला सको अपनी आवाज़, नील गगन में उड़ते पक्षियों के साथ-साथ, यही वसुधा पर रहते हुए भी?
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क्या आज भी बांट देती होगी,अपने सपने किसी और को?
जैसे बांटा करती थी तुम अपनी दो में से एक रोटी मुझे। जब हो जाया करता था मैं नाराज़ अपनी अम्मा से, और चला आता था स्कूल, बिना टिफिन लिए?
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क्या आज भी चला रही होगी अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी बड़े ही बे-धड़क अंदाज़ में। इस उम्मीद में, कि गिरने से पहले ही थाम लेगा कोई तुम्हे, जैसे थामा करता था मैं ‘ तुम्हे और तुम्हारी साइकिल का हैंडल गिरने से पहले, तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ते हुए?
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क्या तुम अब भी बटोरती हो कुछ सपने, जैसे बटोरने जाया करती थी, नहर किनारे की कच्ची अमिया, ‘कच्ची उम्र में मेरे साथ’?
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क्या तुम अब डर जाती होगी बे ढ़ंगे हालातो से, ठीक वैसे ही जैसे डर जाती थी , पीपल के पेड़ वाली घटना सुनकर, और फिर लग जाती थी मेरे गले से, ‘डर के मारे।
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क्या तुम अब भी किसी के आगे हार जाया करती होगी? जैसे हार जाया करती थी लंगड़ी के खेल में, मेरे आगे? सबसे जीतने के बाद भी। सिर्फ इसलिए, कि ‘मैं जीत सकू’।
ऐसा ही बहुत कुछ है जो ‘होगी’ शब्द में लिपटा हुआ है!
लेकिन क्या तुम्हारे पर्स में भी रखी है मेरी वो पुरानी फ़ोटो,
‘ठीक तुम्हारी फ़ोटो के बग़ल में?
और क्या तुम भी, हो जाया करती हो पुरानी,और करती यात्रा भूतकाल की, वर्तमान और भविष्य के द्वार, मात्र एक फ़ोटो को देखकर ‘ठीक मेरी तरह’?
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एक लेखक की तरफ से जो हो जाय करता है पुराना,
देखकर पुरानी फ़ोटो।
~ हेमंत राय।
30-06-2020
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