सावन (कविता)

सावन का ‘उल्लास’ छा रहा,
घन-घोर ‘बदरिया' ला’ रहा।

चहुँ ओर ‘खुशहाली’ फैली
डमरू वाले के ‘भजन’ गा रहा।

डालो पे डल गए ‘झूले’ है,
बैर आपस के ‘भूले’ हैं।

सखियां गाती ‘गीत’ सुहाने,
‘प्रेमी’ का मन सुन डोले हैं।

गंगा घाट ‘संतो’ का टोला,
‘शंखनाद’ है बजा रहा।

ऋतु खड़ी थी तकते रस्ता,
मिलने ‘श्रावण’ प्रेमी आ रहा।

कांधे रखे ‘कावड़’ एक टोला,
बम-भोले एक ‘सुर’ में गा रहा।

सावन का ‘उल्लास’ छा रहा।
घन-घोर ‘बदरिया’ ला रहा।।
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हेमंत राय।
07-07-2020

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