क्या मांगते हो(नज़्म)

नज़्म!!!

गटक कर सारी तुम असाव अजब ही ख़्वाब मांगते हो। तवायफ़ नहीं हूं मैं माशुका मुझसे शबाब मांगते हो।।

तोड़ कर मुझ सी तुम कई कलिया। खुश्बू को अब गुलाब मांगते हो।

पाते हो जिंसी सुकून सब लूट कर मेरा। नज़र-ए-बज़्म मुझ पर हिजाब जानते हो।।

औकात नहीं पत्थर पाने की भी। हर पहर नमाज़ में मेहताब मांगते हो।।

कितने और पहनोगे लिबास झूठ के तुम। हकीकत से भागने को एक और नकाब मंगते हो।।

खयाल ना रहा तुम्हे अपनी करामातो का अब अपने गुनाहों का तुम मुझसे हिसाब मंगते है।।

अमली-हरकत गधे की सी भी नहीं। और बैठने को तुम रकाब मांगते हो।

तवज्जो नहीं मेरी कोई आगे तिरे। नशे में धुत खेलने को मेरे बाबू मांगते हो।।

अभी उतरी नहीं है रात की भी पूरी। तुम अब एक और भरी बोतल शराब मांगते हो।।

होश में आओ तो कभी पता चले। बदज़ात बातो का तुम सहाब बेहिसाब मांगते हो।।

-हेमंत राय।
23-05-2020

1- शराब,2-यौवन, जवानी। 3-जिस्मानी खुशी। 4-सभा के सामने। 5 चांद। 6-घोड़े की काठी का झूलता पाएदान।7-लटे, बाल, 8-नीच,

9-बादल।

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