हिचकी (संस्मरण)

संस्मरण!

शाम जब एक किताब पढ़ने बैठा तो दूसरे पन्ने की तीसरी पंक्ति पर पहुंचा ही था कि, अचानक ही हिचकी आनी शुरू हो गई, एक बार, दो बार, तीन बार, चौथी बार हिचकी आने पर मां ने पीछे से आवाज़ लगा ही दी “जा पानी पी ले।”

मैं उठा, और चल दिया किचन में लगे पानी फिल्टर करने वाली मशीन की तरफ, जो तक़रीबन पांच क़दम की दूरी पर ही थी मुझसे।
पानी गले से उतरने ही वाला था कि, मां की बात याद आ गई...“हिचकी आए तो समझो किसी ने याद किया तुम्हे।”
मैं एकाएक रुक गया!
मैंने तुरंत ही वो पानी का गिलास वहीं पटका और तुम्हारे नाम की हिचकी की माला गले से जपते हुए अपने कमरे में आ गया।
बैठा में किताब लेकर था, लेकिन पन्ने मैं तुम्हारे संग बीती यादों के पलटने लगा।
हां यू तो मैं यक़ीन नहीं करता ऐसी किसी बात पर। लेकिन, ये हिचकी वाली बात तुमसे जुड़ी थी। मैं नहीं चाहता था, कि तुम मुझे याद करना बंद कर दो।

पर क्या सच में, तुमने मुझे याद किया था? जो आज मुझे हिचकी आई?
पर, यह तो कई दिनों बाद आई।
क्या तुमने मुझे कई दिनों बाद याद किया?
हुन? बड़ी “दुष्ट हो तुम”!

अरे नहीं नहीं...मैंने तो यूंही कहा ‘मज़ाक’ में।
ये लो अब ये हिचकी भी बंद। क्या तुम फिर रूठ गई?
पर अगर ये याद वाली बात सच है, तो फिर तुम तो पूरा दिन परेशान ही हो जाती होगी, ‘हिचकी’ से?

मैं जो याद करता रहता हूं......‘तुम्हे’ दिन भर।
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एक लेखक की तरफ़ से, जिसके लिए हिचकी प्रेम के फोन की रिंगटोन का काम करती है।
~हेमंत राय।
10-06-2020
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