तीन लड़कियां (कविता)

मुझे पसंद है यह ‘तीन’ लड़कियां!!!

मुझे पसंद है वो ‘पहली’ लड़की, जिसे कहते हैं लोग नीच।
जो हिस्सा ना होकर भी किसी ओलंपिक का, लगाती हैं दौड़! घर से भागने की।
और होती है धावक ‘प्रेम’ की।
जाति और धर्म को नकार, करती हैं ऊंच-नीच का खंडन।
अपने प्रेम के उत्थान के लिए, भागती हैं सबसे तेज़। और इनाम में मिलती उसे माथे के बीच बंदूक की गोली, और सावन के झूले की उतरी हुई, प्रेमी संग पेड़ से लटकने के लिए गले में रस्सी। किसी मेडल की अपेक्षा। और फिर नज़र आते हैं अपनी मूंछो को ताओ देते हुए नीचे खड़े कुछ नीच मेजबान और दर्शक लोग।
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मुझे पसंद है वो ‘दूसरी’ लड़की। जिसे कहते हैं लोग ‘अभागिन’। जो दहेज़ की मांग करने पर, फेरे से पहले ही ठुकरा देती है, दकियानूसी समूचे समाज को और नकारने का तमाचा लगा देती है, होने वाले पति संग, पूरी बारात को।
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मुझे पसंद है वो ‘तीसरी’ लड़की। जिसे कहते हैं लोग ‘बदतमीज’। जो बेखौफ रखती है क़दम घर की देहलीज से बाहर, रात के वक़्त भी। और शोषण होने पर देती है जवाब, भले ही मुंह से निकले गाली के बदले गाली भी। स्वयं के बचाव में।

मुझे पसंद है यह ‘तीन लड़किया’ !!! _________________________________
एक लेखक की तरफ से, जिसे पसंद हैं ऐसी ‘तीन लड़कियां’ जो लड़ती अपने अधिकारों के लिए। -
हेमंत राय!

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