बंदूके और फूल 】

【बंदूके और फूल 】

वो बंदूक बनाने में मशगूल थे,
और हम फूल लगाने में मसरूफ़,
फिर एक रोज़ दंगे हुए,
वो बंदूक और बम लाए,
और हम फूल ही लाए,
उन्होंने बंदूक तान दी,
हमने फूल आगे कर दिया,
दूसरी तरफ से भी बंदूक लिए कुछ लोग आए,
सभी एक-दूसरे पर,
गोलियां चलाने लगे,
मैं सोचने लगा, की मैं फूल क्यूं लाया हूं?
कुछ देर बाद,
सभी की बंदूके ज़मीन पर,
और गोलियां,
सभी कि छाती में धंसी हुई दिखी।
और मेरे फूल, अब भी हिफ़ाज़त से मेरे हाथ में थे,
पर अब इन फूलों का क्या करू?
जिनके लिए लाया था,
वो तो छाती में गोली धंसवाए
ज़मीन पर पसरे पड़े हैं।
ख़ैर, फिर ये फूल ज़मीन पर बिखरी हुई उनकी लाशों की छाती पर रखने के काम आए।
और लौट आया। अब समझ में आ गया था कि,
मैं फूल क्यों लाया था।
जिनको देने थे उन तक पहुंच ही गए,
उनके ज़िंदा रहते या उनकी ज़िंदगी के बाद।

~हेमंत राय।
२८/०२/२०२०

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