संस्मरण!
यह अच्छी लड़की क्या होती है? मुझे नहीं पता।
पर, जब तुम्हे देखता हूं तो ‘अच्छा’ लगता है,
ठीक वैसा ही, जैसा चौथी कक्षा में तुम ‘एक’ चोटी बनाकर आती थी, लाल रिब्बन लगाकर! उन सभी दो चोटी वाली लड़कियों के बीच।
याद है तुम्हें क्लास में एक बार तुम्हारी पेंसिल खो गई थी।
वो खोई नहीं थी, चोरी हुई थी! और वो चोर... ‘मैं’ ही था।
मैं देखना चाहता था, कि तुम्हारी पेंसिल में ऐसा क्या है कि, तुम शब्द ‘गंदा’ भी लिखो, तो वो भी ‘अच्छा और सुन्दर’ लगता है।
अब जाकर मालूम पड़ा, कि सुन्दर किसी पेंसिल का नहीं, ‘मन’ का होना होता है।
इन दिनों सब मशगूल है किताबे पढ़ने में, और इधर मैं तुम्हारी ‘आंखें’।
जिन पर जाने कितने ही प्रेम उपन्यास लिखे जा चुके हैं, मेरी ’डायरी’ में।
अच्छा सुनो, मैं तुम्हें कोई प्यार-व्यार नहीं करता हूं।
पर हां, तुम अच्छी लगती हो।
एक ‘अच्छी लड़की’।
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# एक लेखक की तरफ़ से,जो कभी लड़का हुआ करता था।
~ हेमंत राय।
६-६-२०२०
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