स्त्री एक पौधा।

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सच है, कि ‘स्त्री’ को मान लिया जाता है एक ‘पौधा’
और लगा दिया जाता है घर के ‘आंगन’ में,

जो सहती है सूर्य की गर्मी से भी अधिक तेज़,
अपने मर्द के गुस्से की ‘तपिश’
और समय-समय पर बाल्टी भर के लांछनो की सी नकारात्मकता।

और पाती है बदले में कहीं ‘दो’ तो कहीं ‘एक’ ही वक़्त का, खाद और पानी उसी आंगन  में।

फिर भी न्योछावर करती है,
पूरे घर में अपनी सुंगध, सुंदरता, और सकारात्मकता खुद के सूख जाने तक।

 हेमंत राय
02-07-2020

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