प्रेम पत्र!( रिपोर्ताज)
प्रेम पत्र!!!
मैं हमेशा से चाहता था, कि मैं भी किसी के लिए ‘पत्र लिखूं, ‘प्रेम पत्र’। अब ज़ाहिर है प्रेम पत्र है तो किसी प्रेमिका के लिए होगा।
और यह सौभाग्य मुझे अब मिला पूरे 26 वर्ष 3 महीने और 8 दिन का होने के बाद।
क्यूंकि, तुम जो हो मेरी ज़िन्दगी में, लेकिन फिर भी, सैकड़ों मिलो दूर।
मन तो किया कि फ़ोन उठाऊं और दूसरों की तरह अपनी अंगुलिया दौड़ा दू फ़ोन की छाती पर। और एक ही पल में पहुंच जाऊं तुम्हारे पास और उड़ेल दू तुम्हारे कान में अपनी तमाम बाते, जो तुम्हारी विरह के एहसास में, किसी विशाल काय ठंडे पर्वत की चोटी पर फूट रहे गर्म ज्वाला मुखि सी हो चुकी है।
पर नहीं! मैं नहीं चाहता था, कि उन सभी बातो कि तपिश तुम्हारे मन तक पहुंचने से पहले ही ठंडी पड़ जाएं, या किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के नेटवर्क में होने वाली, अमूमन कमी के कारण पहुंच ही ना पाए।
मैं चाहता था, कि वो वक़्त लें और यात्रा करे, मेरे शहर से ठीक तुम्हारे गांव तक। और यात्रा के दौरान बढ़ जाए उनकी तपिश कई गुना। तुम तक पहुंचते-पहुंचते।
और दूसरी वजह कि, मुझे कहने से ज़्यादा लिखना पसंद है।
मैंने अपने भीतर का सब कुछ लिख दिया है इस पत्र में, जो अब तक मेरे ‘मन के गर्भ’ में था।
और अब है इस लिफ़ाफे के गर्भ में। एक कागज़ पर, शब्दो के रूप में।
अच्छा सुनो....यह पत्र मेरा ही है इसकी पुष्टि के लिए, लिफ़ाफे की पीठ पर अपना नाम भी लिख दिया है, ठीक वैसे ही, जैसे लिखता था मैं खेल-खेल में अपनी अंगुलियों से ‘तुम्हारी पीठ पर’ अपना नाम।
धन्यवाद् इस समय की स्तिथि और अलगाव का, कि तुम दूर हो, अगर तुम पड़ोस में ही रहती होती, तो शायद मुझे कभी नसीब ना होता पत्र लिखना।
इह्म....‘प्रेम पत्र’ लिखना!
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पत्र एक लेखक का, जिसको कहने से ज्यादा लिखना पसंद है।
- हेमंत राय।
24-06-2020
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मैं हमेशा से चाहता था, कि मैं भी किसी के लिए ‘पत्र लिखूं, ‘प्रेम पत्र’। अब ज़ाहिर है प्रेम पत्र है तो किसी प्रेमिका के लिए होगा।
और यह सौभाग्य मुझे अब मिला पूरे 26 वर्ष 3 महीने और 8 दिन का होने के बाद।
क्यूंकि, तुम जो हो मेरी ज़िन्दगी में, लेकिन फिर भी, सैकड़ों मिलो दूर।
मन तो किया कि फ़ोन उठाऊं और दूसरों की तरह अपनी अंगुलिया दौड़ा दू फ़ोन की छाती पर। और एक ही पल में पहुंच जाऊं तुम्हारे पास और उड़ेल दू तुम्हारे कान में अपनी तमाम बाते, जो तुम्हारी विरह के एहसास में, किसी विशाल काय ठंडे पर्वत की चोटी पर फूट रहे गर्म ज्वाला मुखि सी हो चुकी है।
पर नहीं! मैं नहीं चाहता था, कि उन सभी बातो कि तपिश तुम्हारे मन तक पहुंचने से पहले ही ठंडी पड़ जाएं, या किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के नेटवर्क में होने वाली, अमूमन कमी के कारण पहुंच ही ना पाए।
मैं चाहता था, कि वो वक़्त लें और यात्रा करे, मेरे शहर से ठीक तुम्हारे गांव तक। और यात्रा के दौरान बढ़ जाए उनकी तपिश कई गुना। तुम तक पहुंचते-पहुंचते।
और दूसरी वजह कि, मुझे कहने से ज़्यादा लिखना पसंद है।
मैंने अपने भीतर का सब कुछ लिख दिया है इस पत्र में, जो अब तक मेरे ‘मन के गर्भ’ में था।
और अब है इस लिफ़ाफे के गर्भ में। एक कागज़ पर, शब्दो के रूप में।
अच्छा सुनो....यह पत्र मेरा ही है इसकी पुष्टि के लिए, लिफ़ाफे की पीठ पर अपना नाम भी लिख दिया है, ठीक वैसे ही, जैसे लिखता था मैं खेल-खेल में अपनी अंगुलियों से ‘तुम्हारी पीठ पर’ अपना नाम।
धन्यवाद् इस समय की स्तिथि और अलगाव का, कि तुम दूर हो, अगर तुम पड़ोस में ही रहती होती, तो शायद मुझे कभी नसीब ना होता पत्र लिखना।
इह्म....‘प्रेम पत्र’ लिखना!
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पत्र एक लेखक का, जिसको कहने से ज्यादा लिखना पसंद है।
- हेमंत राय।
24-06-2020
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